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“मीड डे मील” और" बच्चों की सेहत"

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 सरकारी स्कूल में फूड पैकेट बांटने का टेंडर रद्द, बच्चों को मिलेंगे पैसे

झारखण्ड राज्य के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मीड डे मील (एम.डी.एम) का फूड पैकेट देने का टेंडर तत्काल प्रभाव से पूर्णत: रद्द कर दिया गया है। इसके बदले बच्चों को कुकिंग कोस्ट (खाना के बदले पैसा) देने की तैयारी की जा रही है। कुकिंग कोस्ट में चावल के अलावा दाल, नमक, तेल मसाला सब्जी आदि के हिसाब से राशि दी जाएगी। यह राशि प्रतिदिन एक छात्र पर लगभग 5 रुपये(कक्षा एक-पाँच तक) और  लगभग 8 रुपये (कक्षा छ:-आठ तक) के हिसाब से छात्र-छात्राओं को दिया जाएगा ।

 इसके अलावा 28 दिसम्बर तक बच्चों को पोशाक, स्वेटर और जूता-मौजा देने के लिए 217 करोड़ रुपयों का आबंटन किया गया है। इस संबंध में स्कूली शिक्षा एंव साक्षरता विभाग के सचिव राजेश शर्मा ने सभी स्वयंसेवी समूहों को आदेश दिया है कि पोशाक उपलब्ध न कराए जाने पर बच्चों के बैंक खाते में राशि ट्रांसफर की जाएगी।

ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार एम.डी.एम योजना के माध्यम से बच्चों में कुपोषण को दूर कर उन्हें स्कूल आने के लिए प्रोत्साहित करना चाहती है, तो क्या भोजन और पोशाक( सामान) न देकर पैसे देने (नकदी) से सरकार का यह लक्ष्य पूरा होगा ?  सरकार के इस फैसले का बच्चों के स्वास्थय पर क्या असर होगा

समझते है कुछ आँकड़ो के माध्यम से। 1993-2016  के आँकड़ो से पता चलता है कि जिन बच्चों को मुफ्त स्कूल लंच मिलता था, उन बच्चों में बौनापन कम होता है। इसके अलावा प्रकृति संचार में छपे एक अध्ययन में यह बातें सामने आईं हैं कि जिन लड़कियों को एम.डी.एम का लाभ मिला, उनकी उस उम्र के हिसाब से हाइट अच्छी है, उनकी तुलना में जो एम.डी.एम का लाभ नहीं ले रहीं थीं।

 23 साल की माताओं और उनके बच्चों के समूह पर राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि डेटा का उपयोग करते हुए, पेपर ने दिखाया है कि 2016 तक ,उन क्षेत्रों मे बौनापन (स्टंटिंग) का प्रचलन काफी कम था जहाँ 2005 में एम.डी.एम योजना लागू की गई थी। 3 में से 1 से अधिक भारतीय बच्चें अविकसित हैं या उनकी उम्र के हिसाब से हाइट बहुत कम हैं, जो पुराने कुपोषण को दर्शाता है। 2006-2016 के बीच भारत में बच्चों की ऊचाँई दर आयु जेड-स्कोर (एचएजेड) में 13-32 प्रतिशत का सुधार देखा गया हैं एम.डी.एम की वजह से।

राँची के एसडीएम के अनुसार मीड डे मील 32 लाख बच्चों को दिया जाता है। मीड डे मील के सकारात्मक परिणामों को देखकर और सरकार के इस फैसले से बच्चों के भविष्य (शिक्षा और स्वास्थय संबंधी ) को लेकर चिंता जताई जा रही है। शिक्षा अधिवक्ताओं ने चेतावनी दी है कि पैसे देने से स्कूल परिसर में गर्म पके हुए भोजन के समान प्रभाव नहीं पड़ेगा, विशेषरूप से उन बच्चियों के लिए जो घर पर अधिक भेदभाव का सामना करती हैं और स्कूल बंद होने के कारण स्कूल छोड़ने की अधिक संभावनाएं है, क्योंकि ऐसे कई उदाहरण है जो ये दर्शाते हैं कि गरीब लोग बच्चों की इस राशि को अपने अन्य कार्यो पर खर्च कर देते हैं।

अध्ययन के निष्कर्ष इस चिंता को और बढ़ा देते हैं कि स्कूली शिक्षा और मध्याहन् भोजन योजना में रूकावटों का दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है, जो अगली पीढ़ी के पोषण स्वास्थय को भी नुकसान पहुंचा सकता है। सशर्त नकदी हस्तान्तरण(सी.सी.टी) यह दर्शाता है कि सरकारी नजरिए का झुकाव आपूर्ति के पक्ष पर जोर देने की जगह माँग पर काम करने की ओर है।

 

  पोशाक व स्वेटर के लिए दी गई राशि

कक्षा एक - पाँच                                 कक्षा छह –आठ तक

दो सेट पोशाक         350 रुपए                 दो सेट पोशाक         400 रुपए

एक फुल स्वेटर        150 रुपए                  एक फुल स्वेटर         200 रुपए

एक जोड़ा जूता व मोजा 100 रुपए                  एक जोड़ा जूता व मोजा   160 रुपए

कुल                 600 रुपए                     कुल                  760 रुपए


 

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