लुगूपहाड़ की सैर
झारखण्ड के संथाल जनजातियों के बारे में जानने के लिए,मैं घर से निकली और पहुँची लुगूपहाड़। रांची से 115 कीलोमीटर दूर बोकारो जिले की ललपनिया में स्थित लुगूबुरू घंटाबाड़ी धोड़ोमगढ़ , संथाल जनजातियों का पवित्र धर्मिकस्थल है जो पहाड़ी पर स्थित है। ये पहाड़ी झारखण्ड की दुसरी सबसे बड़ी पहाड़ी श्रृंखला है। दामोदर नदी और छोटी पहाड़ियों से घिरी ये जगह काफी खूबसूरत है,जो घने जंगलों और पहाड़ी नदियों से सजी है। दूर से देखने पर सिर्फ जंगल दिखता है,पर पास जाने पर यहां की चट्टानें कुछ नई बातें ही बताते है। कुछ चट्टानें पेड़ के जड़ तो कुछ लहरों की आकृती धारण किए हुए हैं। पहाड़ों पर चट्टानों की ये कलाकृती सचमुच अद्भुत है।
लुगूबुरू घंटाबाड़ी धोड़ोमगढ़ की यात्रा तलहटी से शुरू होकर 7 किमी की चढ़ाई के बाद धीड़ी –धड़ान पर खत्म होती है।तो आइए सफर शुरू करते है और जानते हैं लुगूपहाड़ से जुड़ी कुछ रोचक बातें।
सागुन दराम अर्थात आपका स्वागत है। वर्ष 2000 से हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहां अंतराष्ट्रीय संथाल सरना धर्मसम्मेलन का दो दिवसीय राजकीय महोत्सव आयोजित किया जाता है।इस राजकीय महोत्सव में धर्म ,भाषा ,साहित्य और शिक्षा के विकास पर चर्चा होती है।
मान्यता है कि हजारों-लाखों वर्ष पूर्व इसी स्थल पर लुगूबाबा की अध्यक्षता में संथालियों का जन्म से लेकर मरण तक के रीति-रिवाज बनाए गए थे।बारह वर्षों तक मैराथन बैठक करके संथाली संविधान की रचना की गई ।जिसके आधार पर उनका सामाजिक व्यवस्था आज भी व्यवस्थित है ।इतने लम्बे समय तक हुई इस बैठक के दौरान संथालियों ने इसी स्थान पर फसल उगाई और धान कूटने के लिए चट्टानों का प्रयोग किया ,जिसके चिन्ह आज भी आधा दर्जन उखल के रुप में मौजूद है। वहीं पेयजल के लिए पहाड़ी झरना( सीता नाला) का स्वच्छ और शीतल जल का उपयोग किया गया ।स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इस झरने का पानी पीने से पेट संबंधी कई बीमारियां दूर होती है।
यहां महोत्सव के दौरान मेला लगता है,जहां अनोखे पारंपरिक वाद्य यंत्र, कपड़े, खाने- पीने की चीजों के अतिरिक्त संथाली भाषा में किताबें भी बिकतीं हैं। संथालीं अपनी भाषा और साहित्य के प्रति कितने जागरुक है ये इसी बात का प्रमाण हैं। देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों-लाखों लोग यहां आते हैं। झारखण्ड के अलावा बिहार, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ के संथालीगण तो आते ही है ,इसके अलावा विदेश से भी संथाल लोग लुगूबाबा का दर्शन करने आते हैं।इस पहाड़ी की तलहटी में भक्तों के लिए शौचालय और यात्री निवास बने हुए है। मेले के समय यहां टेन्ट लगाए जाते है जहाँ लोग रात्रि विश्राम करते है।रात भर आराम करने के बाद सुबह-सुबह लोग तलहटी से 7 किमी की चढ़ाई शुरू करते है। पहाड़ी की पवित्रता बनाए रखने के लिए यहां सड़क निर्माण नहीं किया गया है। चढ़ाई कठिन है पर भक्त अपनी हिम्मत ,साहस और साथियों के साथ एकसाथ चढ़ते है। पहाड़ पर चढ़ाई लम्बी और थका देने वाली होती पर श्रद्धालुओं की चुस्ती -फुर्ती देखकर ऐसा लगता ही नहीं।आते-जाते यात्री जंगल से उपयोगी जड़ी-बूटी और पत्ते भी संग्रह करते है,जिसका उपयोग कई रोगों के इलाज में किया जाता है।
लुगुबुरू घांटाबाड़ी धोड़ोमगढ़ एक ऐसी पहाड़ी है जिस पर संथालों का विश्वास है कि उनके पूर्वजों ने यहाँ एक सरल, सहज और सामान्य जीवन व्यवस्था के नियम बनाएं थे, जिसका अनुसरण वह आज भी करते हैं| हमारे इस आधुनिक और मशीन से भरे जि़न्दगी के बीच कितनी जटिलताएं आ गई है, अगर हम थोड़ा सा उनके जैसा सहज जीवन को अपनाएं तो शायद इतना दबाव और तनाव हमारे जीवन से भी कम हो सकता है |
बहुत अच्छा नेहा
ReplyDeleteGajab
ReplyDelete👍👍
ReplyDeleteKeep going 👏👏
ReplyDeleteReally to good sister
ReplyDeleteTysm bhai
DeleteWell done didu😊
ReplyDeleteNice 👌
ReplyDeleteWahh neha
ReplyDeleteSuperb story sister
ReplyDeleteGood neha
ReplyDeleteSuper...Neha...👍👌
ReplyDeleteBhottttttttttttttttt Khubbbbbbbbbbbbbb....Neha
DeleteTysm dost
DeleteBahut khub
ReplyDeleteGod's jobb ......👍👍
ReplyDeleteAmazing theme behind this story 😊. I want to feel this in reality of nature ☺️
ReplyDeleteYes you will enjoy more. Thank u
DeleteNice 👍
ReplyDeleteVery good
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ReplyDeleteKhub bhalo 😜
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